वोह हसीना रात भर सताती रही
मेरे बाँहों में ना आनेकी ज़िद करती रही
उसके इन्तज़ार में बिस्तर पर लेटे हुए
में खुली आँखों से उसकी सपना देख रहा था
वोह शायद हम पर नाराज़ थी
या दूर से हमारी प्रतीक्शा कर रही थी
है नींद, अब तो मेरे बाँहों में आजाओ
क्योंकि में, हम दोनों का मिलन की राह देख रहा हूँ…
मेरे बाँहों में ना आनेकी ज़िद करती रही
उसके इन्तज़ार में बिस्तर पर लेटे हुए
में खुली आँखों से उसकी सपना देख रहा था
वोह शायद हम पर नाराज़ थी
या दूर से हमारी प्रतीक्शा कर रही थी
है नींद, अब तो मेरे बाँहों में आजाओ
क्योंकि में, हम दोनों का मिलन की राह देख रहा हूँ…
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