Valentine

Monday, March 16, 2009

मैं और मेरी तनहाई...



जब भी मैं उनसे दूर होती हूँ,

यह तनहाई मेरे साथ होती है,


उन्हें भूलने की जितनी मैं कोशिश करती हूँ,

उतनी ही याद यह तनहाई मुझे दिलाती है,


बिस्तर पर ओढ़े हुये इस चादर की कसम,

अपने होंठों से लिप्टी हुई इस शर्बत की कसम,


रात भर जलती हुई इन बत्तियों की कसम,

दिन-रात मेहकते हुए इन फूलों के खुशबू की कसम,


टूटे हुए इन चूडियों की कसम,

माथे की सिंदूर की कसम,


हर एक लम्हा उनके साथ जो मैं बितायी,

आँखों के सामने एक झलक सी दिखलायी,


हर एक बात उन्होंने जो हमसे बतायें,

कानों मैं गूंज रहे हैं जैसे बजे शहॅनायी,


अब हमे आपका ही इंतज़ार है,

वापिस अब तो आजाओ और देर ना लगाओ...

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