
इस कदर हमारी मुलाक़ात कुछ आप से हुई
जैसे शबनम को गुलदस्ते से हुई
यह मिलन एक बेमिसाल है
जैसे कुदरत का कुछ करिश्मा है
जब भी हम आप को याद करते है
हमारे नज़रों के सामने आपको पाते है
इन दो दिनों की मुलाक़ात
कुछ दिल में जादूसी छागयी है
पलकों में नींद नहीं आती है
और होंटों पे लफ़्ज़ों कि कमीसी होती है
सोते हुए और जागते हुए
सदा आप ही को याद करते है
अब कैसी है यह रुसवाई
जब खिलने लगी है ज़िन्दगी उल्फत में तुम्हारी...
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